यन्त्रोपारोपितकोशांशः

सम्पाद्यताम्
 

पृष्ठभागोऽयं यन्त्रेण केनचित् काले काले मार्जयित्वा यथास्रोतः परिवर्तयिष्यते। तेन मा भूदत्र शोधनसम्भ्रमः। सज्जनैः मूलमेव शोध्यताम्।


अगनीध् पु.
श्रौत यागों के समूह में सहायक के रूप में कार्य करने वाले अगिन्-समिन्धन सम्पादित करने वाले एक ऋत्विक् का नाम, तै.सं. 1.8.18.1 = तै.ब्रा. 1.8.2.5; तै.सं. 2.6.5.6; मै.सं. 1.4.13; 1.9.4; वा.सं. 7.15; अ.वे. 24.6; पञ्च.ब्रा. 25.18.4; 18.9.18; कौषि.ब्रा. 1०.3; श.ब्रा. 2.4.13; गो.ब्रा. 2.4.5; शां.श्रौ.सू. 1.6.3; 1०.14.4; बौ.श्रौ.सू. 1.213 ः 8; आप.श्रौ.सू. 3.35; मा.श्रौ.सू. 19.16; 33.17 का.श्रौ.सू. अगिन्होत्रित्व अगनीध् 2.6.12। ब्रह्मन् का सहायक किन्तु वास्तव में अध्वर्यु का; अध्वर्यु के ‘ओ श्रावय’ प्रैष देने पर हाथ में स्फ्य को उठाये ‘अस्तु श्रौषट्’ को कहकर अनेक बार उत्तर देता है (प्रत्याश्रवण करता है) का उसे अध्वर्यु के निर्देशों का पालन भी करना होता है। जैसे प्रोक्षणी का आसादन एवं पाठ, ‘मदन्ती’ संज्ञक जल को गर्म करना, आलभ्य के आगे चलना, सहस् में धिष्ण््य-संज्ञक अंगीठियों पर अगिन् का वितरण इसी प्रकार और सोम-याग के समय वह सदैव अगिन्यों को संभालता है, एक वृषभ या मेष उसकी दक्षिणा है, वह ‘इडा’ के षडवत्त का बृहत्तर भाग प्राप्त करता है। ला.श्रौ.सू. 4.12.8 के अनुसार एक पाँचवर्षीया गाय उसकी दक्षिणा है; वह इस उद्देश्य के लिए ‘तृतीयिन्’ के रूप में माना गया है। Debrunner 858, श्रौ.को. चटर्जी स्मृति ग्रन्थ -Vol.1955, 72-82; श्रौत प.नि. 2.6 भी देखें। अगनीध्र = आगनीध्र; ला.श्रौ.सू. 4.12.8; देखें अगिन्द्। अगनीध्र

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