यन्त्रोपारोपितकोशांशः

सम्पाद्यताम्
 

पृष्ठभागोऽयं यन्त्रेण केनचित् काले काले मार्जयित्वा यथास्रोतः परिवर्तयिष्यते। तेन मा भूदत्र शोधनसम्भ्रमः। सज्जनैः मूलमेव शोध्यताम्।


चतुर्थीकर्मन्/ चतुर्थी--कर्मन् n. the ceremonies performed on the 4th day of a marriage Gobh. ii , 5 , 1 S3a1n3khGr2. i , 18 , 1.

 

पृष्ठभागोऽयं यन्त्रेण केनचित् काले काले मार्जयित्वा यथास्रोतः परिवर्तयिष्यते। तेन मा भूदत्र शोधनसम्भ्रमः। सज्जनैः मूलमेव शोध्यताम्।


चतुर्थीकर्मन् न.
विवाह के उपभोग का कृत्य; पति द्वारा तीन रात्रि तक (त्रिरात्र, तु. अधःशय्या) की अवधि तक रति- संयम रखने के बाद इसका अनुष्ठान किया जाता है; इसे भी विवाह-संस्कार का एक अंग मानते हैं। ‘दण्ड’ को हटाकर पति एक होम करता है आप. गृ.सू. 8.9-1०, विभिन्न देवताओं के लिए आठ आहुतियों से, शां.गृ.सू. 1.18.3; वह प्रजापति को एक स्थालीपाक समर्पित करता है (आहुति देता है) शेष भाग को जलपात्र में उड़ेलता है, जिसमें से वह पत्नी के शिर पर जल छिड़कता है। वह पक्वभोजन की खिचड़ी खाती है। पति उसके (पत्नी के) शरीर अथवा हृदय-प्रदेश पर आज्य का लेप लगाता है, आप.गृ.सू. 8.1०; गौ.गृ.सू. 2.5.6. इस कृत्य को करने के बाद प्रत्येक मासिक के बाद रतिक्रिया सम्पन्न की जा साकती है, शां. गृ.सू. 1.18-19, आप.गृ.सू. 8.9-13; पा.गृ.सू. 1.11; हि.गृ.सू. 1.23.11; 24.1-8. यह कृत्य इङ्गित करता है कि विवाह के समय तक वधू युवावस्था प्राप्त कर लेती थी; तुल. हि.आ.ध. II (I) 2०2-०4

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