निविद्
यन्त्रोपारोपितकोशांशः
सम्पाद्यताम्Apte
सम्पाद्यताम्
पृष्ठभागोऽयं यन्त्रेण केनचित् काले काले मार्जयित्वा यथास्रोतः परिवर्तयिष्यते। तेन मा भूदत्र शोधनसम्भ्रमः। सज्जनैः मूलमेव शोध्यताम्। |
निविद् [nivid], 2 P. (generally in the Caus.)
To tell, communicate, inform (with dat.); उपस्थितां होमवेलां गुरवे निवेदयामि Ś.4; काश्यपाय वनस्पतिसेवां निवेदयावः ibid; R.2.68.
To declare or announce oneself; कथमात्मानं निवेद- यामि Ś.1.
To indicate, betray, show; शङ्कापरिग्रहनि- वेदयिता Mu.1; दिगम्बरत्वेन निवेदितं वसु Ku.5.72; R.17.4.
To offer, present, give, make an offer of; स्वराज्यं चन्द्रापीडाय न्यवेदयत् K.367; राज्यमस्मै न्यवेदयत् R.15.7; 11.47; Ms.2.51; Y.1.27.
To entrust to the care of, make or deliver over to.
निविद् [nivid], f. Ved.
Speech, a short Vedic text; स हेतयैव निविदा प्रतिपेदे यावन्तो वैश्वदेवस्य निविद्युच्यन्ते Bri. Up.3.9.1.
Instruction, precept, direction.
Invocation.
Monier-Williams
सम्पाद्यताम्
पृष्ठभागोऽयं यन्त्रेण केनचित् काले काले मार्जयित्वा यथास्रोतः परिवर्तयिष्यते। तेन मा भूदत्र शोधनसम्भ्रमः। सज्जनैः मूलमेव शोध्यताम्। |
निविद्/ नि- ( aor. -अवेदिषुर्BhP. ; inf. -वेदितुम्, with v.l. दयितुम्S3a1k. ) , to tell , communicate , proclaim , report , relate:Caus. -वेदयति, ते( pf. -वेदयाम् आसind.p. दयित्वा, or द्य) id. (with dat. gen. or loc. ) Mn. MBh. Ka1v. etc. ; to offer , present , give , deliver Br. Gr2S. etc. ; (with आत्मानम्) , to offer or present one's self (as a slave etc. ) S3Br. Mn. etc. ; to proclaim i.e. introduce one's self R. S3ak. Katha1s. ; (with दोषम्)to throw the blame upon( dat. ) Pan5c. ( B. ) iii , 163 .
निविद्/ नि- f. instruction , information RV. (See. Naigh. i , 11 )
निविद्/ नि- f. N. of partic. sentences or short formularies inserted in a liturgy and containing epithets or short invocations of the gods AV. VS. Br. S3rS. etc.
Vedic Rituals Hindi
सम्पाद्यताम्
पृष्ठभागोऽयं यन्त्रेण केनचित् काले काले मार्जयित्वा यथास्रोतः परिवर्तयिष्यते। तेन मा भूदत्र शोधनसम्भ्रमः। सज्जनैः मूलमेव शोध्यताम्। |
निविद् स्त्री.
(निवेद्यतेऽनया, नि+विद्+क्विप्) दर्शपूर्णमास में ‘प्रवर’ का नाम लेने के बाद पढ़ा जाने वाला गद्यमय मन्त्र, श्रौ.को. (अं.) 1.342. अध्वर्यु द्वारा ‘प्र मे ब्रूत भागधेयम......’ इस मन्त्र से देवताओं की स्तुति किये जाने के बाद उसको (अध्वर्यु को) करछुल ग्रहण कराने के सम्बद्घ में उसे ‘अगिर्न्होता’ से प्रारम्भ होने वाली ‘निविद्’ का पाठ करना चाहिए, शां.श्रौ.सू. 21.1-2. ‘निविदध्याय’ संज्ञक पाठ्य (ग्रन्थ) में इस प्रकार के पाठों को एक स्थान पर संग्रहीत किया गया है. चि.भा.से. छोटे मन्त्र, जिनमें 12 उपवाक्य हों (ऐ.ब्रा.1०.2), उस शस्त्र (जिसके ये अङ्ग हों) के मध्य अथवा अन्त में, इनका पाठ माध्यन्दिन अथवा तृतीय सवन में किया जाता है। ये सम्बद्घ देवताओं के नाम की घोषणा करते हैं और ‘तुष्णींशंस’ के पश्चात् .जोर से दुहराये जाते हैं, आश्व.श्रौ.सू. 5.9.12; इन्हें ‘पुरोरुच्’ भी कहते हैं, हि.आ.ध. II (2)-118०; द्रष्टव्य- ‘अग्न्युपस्थान’ के मन्त्र, गोंड जे., 1978, पृ. 112.