यन्त्रोपारोपितकोशांशः

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कल्पद्रुमः

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पृष्ठभागोऽयं यन्त्रेण केनचित् काले काले मार्जयित्वा यथास्रोतः परिवर्तयिष्यते। तेन मा भूदत्र शोधनसम्भ्रमः। सज्जनैः मूलमेव शोध्यताम्।


राजसूयः, पुं, (“राज्ञा लतात्मकः सोमः सूयते ऽत्र ।” इत्यमरटीका ॥ सु + अधिकरणे क्यप् । “राज्ञा सोतव्यः राज्ञा वा इह सूयते ।” इति काशिका । “राजसूयसूर्य्येति ।” ३ । १ । ११४ । इति निपातनान् दीर्घः ।) राजकर्त्तव्य- यज्ञविशेषः । तत्पर्य्यायः । नृपाध्वरः २ क्रतु- राजः ३ क्रतूत्तमः ४ । इति शब्दरत्नावली ॥ (अमरमते क्लीवलिङ्गोऽयम् । ३ । ५ । ३१ ॥ यथा, महाभारते । १ । १५७ । १६ । “यक्ष्यन्ति च नरव्याघ्रा निर्ज्जित्य पृथिवीमिमाम् राजसूयाश्वमेधाद्यैः क्रतुभिर्भूरिदक्षिणैः ॥” राजसूयमन्त्रादिकं वाजसनेयसंहितायाम् ९ अध्यायस्य ३५ कण्डिकामारभ्य १० अध्या- यस्य ३० कण्डिकापर्य्यन्तं द्रष्टव्यम् ॥ युधिष्ठिरस्य राजसूययज्ञविवरणन्तु महाभारते सभापर्व्वणि विशेषतो द्रष्टव्यम् ॥)

वाचस्पत्यम्

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राजसूय¦ पु॰ राज्ञा सूयते सू--कर्मणि क्यप्। राजमात्रकर्त्तव्येयज्ञभेदे शब्दच॰।
“रांजा राजसूयेन यजेत” श्रुतिः।

शब्दसागरः

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राजसूय¦ n. (-यं)
1. A sacrifice performed only by an universal monarch, attended by his tributary princes; as in the case of YUDHISHT'HIRA, and others.
2. A lotus.
3. A mountain.
4. A sort of rice. E. राज a king, (by him,) and षू to be produced, to be effected, aff. क्यप्; or राज the moon, for the moon-plant of which the acid-juice is drank at the ceremony, and सु to bring forth, the same aff., deriv. irr. [Page602-b+ 60]

 

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राजसूय/ राज--सूय m. a great sacrifice performed at the coronation of a -kkind (by himself and his tributary princes e.g. the sacrifice at the inauguration of युधि-ष्ठिर, described in MBh. ii ) AV. etc.

राजसूय/ राज--सूय m. N. of various works. ( esp. of S3Br. vii , in the काण्वशाखा)

राजसूय/ राज--सूय n. (only L. )a lotus-flower

राजसूय/ राज--सूय n. a kind of rice

राजसूय/ राज--सूय n. a mountain

राजसूय/ राज--सूय mfn. relating etc. to the -R राज-sacrifice ceremony( e.g. यो मन्त्रः, a मन्त्रrecited at the -R राज's -cceremony) Pa1n2. 4-3 , 66 Va1rtt. 5 Pat.

 

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(I)--the conqueror of cardinal points was fit to perform this: युधिष्ठीर on this, to कृष्ण: Done by Soma who conquered the three worlds; फलकम्:F1:  भा. X. ७१. 2[1]; ७२-3; IX. १४. 4; वा. ९०. २२.फलकम्:/F युधिष्ठिर's desire to be a पारमेष्ठी. So ऋत्विक्स् were sent for, including भीष्म, Vidura. Even शूद्रस् were invited. After the sacrifice, on the suggestion of Sahadeva, the first honour was given to कृष्ण. शिशुपाल's protest and vilification of कृष्ण who had his head cut off. In the sacrifice each brother was assigned specific functions--Duryodhana in charge of treasury, भीम cooking, Nakula the supply of provisions, etc. The अवभृत bath at गन्गा accompanied by divine music. Every visitor duly honoured, returned back. Jealousy of Duryodhana at the success of the sacrifice. फलकम्:F2:  भा. VII. 1. १३;; X. ७०. ४१; Chh. ७४-75.फलकम्:/F The consecration ceremony of a king done by पृथु, वालि and others. फलकम्:F3:  Br. II. ३६. ११३; III. 7. २६८; 8. २५; ६३. ११६; ७२. २८; वा. ६२. ९५; ७०. २१.फलकम्:/F [page३-068+ ३४]
(II)--the head of the Veda. वा. ७१. ७७; ८८. ११८. Ib. १०४. ८४; ११२. ६३.
(III)--the fifth गान्धार gra1mika. वा. ८६. ४२.
 

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RĀJASŪYA : A great yajña. Hariścandra and also Dharmaputra performed it. (Sabhā Parva, Chapters 33, 35, 84).


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*4th word in left half of page 628 (+offset) in original book.

Vedic Index of Names and Subjects

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Rājasūya.--Read ‘victor’ for ‘victim’ in line 12.
==Foot Notes==

 

पृष्ठभागोऽयं यन्त्रेण केनचित् काले काले मार्जयित्वा यथास्रोतः परिवर्तयिष्यते। तेन मा भूदत्र शोधनसम्भ्रमः। सज्जनैः मूलमेव शोध्यताम्।


राजसूय पु.
(राज्ञा सोतव्यः, राजा वेह सूयते, काशि. राजसूयसूर्यं- मृषोद्य, पा. 3.1.114) ‘राजा का जन्म’; राज्याभिषेक का कृत्य (एक याग) जिसका अनुष्ठान केवल क्षत्रिय ही कर सकता है (ला.श्रौ.सू. 9.1.1)। यह दो वर्ष से अधिक समय तक चलता है जिसका प्रारम्भ फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (प्रथम दिन) को होता है। प्रारम्भिक भाग का शुभारम्भ पाँच दिन तक चलने वाले पवित्र सोम- याग से होता है, जिसके बाद एक के बाद एक के क्रम से इष्टियों का अनुष्ठान होता है ः अनुमति, चातुर्मास्य (एक वर्ष में साध्य), इन्द्रतुरीय, पञ्चवीतीय (अथवा पञ्चमेधीय, अपामार्गहोम, रत्निनां हवींषि (12 दिन तक चलने वाला), मित्र एवं बृहस्पति के लिए इष्टि। अभिषेचनीय कृत्य राजसूय का मुख्यस्थानीय (केन्द्र अथवा सार) है। तब अच्छी तरह से तैयार किये गये अभिषेक जल को शाही यजमान के ऊपर उड़ेला जाता है। जलों के विसर्जन के समय ‘नामव्यतिषञ्जनीय’ कृत्य का अनुष्ठान किया जाता है। उसके बाद वाजपेय की तरह रथदौड़, अपने सम्बन्धियों के ही 1०० या उससे अधिक के झुण्ड पर झपट्टा सम्पन्न होता है। वह गायों को अपने अधिकार में कर लेता है किन्तु पुन. उन्हें वापस दे देता है। वह रत्नियों से घिरे अगनीध्र के सम्मुख रखे सिंहासन पर बैठता है। अक्षवाप द्वारा चिह्नित स्थान पर द्यूतक्रीडा का कृत्य सम्पन्न होता है। सदैव राजा जीतता है। इसके बाद शुनः शेप की आख्यायिका का वाचन किया जाता है? अभिषेचनीय के बाद अगले दस दिन ‘संसृपां हवींषि’ नाम की दस इष्टियां एक प्रत्येक दिन (करके) अनुष्ठित होती हैं, यह अनुष्ठान उसे ‘दशपेय’- संज्ञक ‘सोम-याग’ के लिए दीक्षित बनाता है; दशपेय के अवभृथ के पश्चात् राजा को एक वर्ष के लिए कुछ निश्चित व्रतों (देवव्रतों) का पालन करना होता है जिसके अन्त में केशवपनीय (अतिरात्र) सोम-याग का अनुष्ठान किया जाता है। दक्षिणा के रूप में प्रधान पुरोहितों को प्रत्येक को 32००० गायें; द्वितीयिन् लोगों में प्रत्येक को 16००० गायें, तृतीयिन् लोगों में प्रत्येक को 8००० एवं पदिन् लोगों में प्रत्येक को 4००० (चार हजार) गायें अभिषेचनीय में बांटी जाती हैं, आश्व.श्रौ.सू. 9.43-5; बौ.श्रौ.सू. 18.8-22; का.श्रौ.सू. 15.1-9; आश्व.श्रौ.सू. 9.3-4।

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