यन्त्रोपारोपितकोशांशः

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कल्पद्रुमः

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पृष्ठभागोऽयं यन्त्रेण केनचित् काले काले मार्जयित्वा यथास्रोतः परिवर्तयिष्यते। तेन मा भूदत्र शोधनसम्भ्रमः। सज्जनैः मूलमेव शोध्यताम्।


अंशुः, पुं, (अंशयति इति अंश विभाजने । मृग- ष्वादित्वात् कुः ।) किरणः ॥ प्रभा ॥ इति मेदि- नी ॥ वेशः ॥ इति धरणी ॥ सूत्रादिसूक्ष्मांशः । इति हेमचन्द्रः ॥ लेशः ॥ सूर्य्यः ॥ इति विश्वः ॥ (ऋषिविशेषः । लतावयवः । सोमलतावयवः । भागः ।)

 

पृष्ठभागोऽयं यन्त्रेण केनचित् काले काले मार्जयित्वा यथास्रोतः परिवर्तयिष्यते। तेन मा भूदत्र शोधनसम्भ्रमः। सज्जनैः मूलमेव शोध्यताम्।


अंशु पुं।

किरणः

समानार्थक:किरण,अस्र,मयूख,अंशु,गभस्ति,घृणि,रश्मि,भानु,कर,मरीचि,दीधिति,शिखा,गो,रुचि,पाद,हायन,धामन्,हरि,अभीषु,वसु

1।3।33।1।4

किरणोऽस्रमयूखांशुगभस्तिघृणिरश्मयः। भानुः करो मरीचिः स्त्रीपुंसयोर्दीधितिः स्त्रियाम्.।

 : ज्योत्स्ना, रवेरर्चिः

पदार्थ-विभागः : , द्रव्यम्, तेजः

अंशु पुं।

सूर्यः

समानार्थक:सूर,सूर्य,अर्यमन्,आदित्य,द्वादशात्मन्,दिवाकर,भास्कर,अहस्कर,ब्रध्न,प्रभाकर,विभाकर,भास्वत्,विवस्वत्,सप्ताश्व,हरिदश्व,उष्णरश्मि,विकर्तन,अर्क,मार्तण्ड,मिहिर,अरुण,पूषन्,द्युमणि,तरणि,मित्र,चित्रभानु,विरोचन,विभावसु,ग्रहपति,त्विषाम्पति,अहर्पति,भानु,हंस,सहस्रांशु,तपन,सवितृ,रवि,पद्माक्ष,तेजसांराशि,छायानाथ,तमिस्रहन्,कर्मसाक्षिन्,जगच्चक्षुस्,लोकबन्धु,त्रयीतनु,प्रद्योतन,दिनमणि,खद्योत,लोकबान्धव,इन,भग,धामनिधि,अंशुमालिन्,अब्जिनीपति,चण्डांशु,क,खग,पतङ्ग,तमोनुद्,विश्वकर्मन्,अद्रि,हरि,हेलि,अवि,अंशु,तमोपह

3।3।219।3।2

कोशोऽस्त्री कुड्मले खड्गपिधानेऽर्थौघदिव्ययोः। नाशः क्षये तिरोधाने जीवितेशः प्रिये यमे। नृशंसखड्गौ निस्त्रिंशावंशुः सूर्येंशवः कराः। आश्वाख्या शालिशीघ्रार्थे पाशो बन्धनशस्त्रयोः। सुरमत्स्यावनिमिषौ पुरुषावात्ममानवौ॥

अवयव : किरणः

पत्नी : सूर्यपत्नी

सम्बन्धि2 : सूर्यपार्श्वस्थः

वैशिष्ट्यवत् : प्रभा

सेवक : सूर्यपार्श्वस्थः,सूर्यसारथिः

पदार्थ-विभागः : नाम, द्रव्यम्, तेजः, ग्रहः

अंशु पुं।

कराः

समानार्थक:अंशु

3।3।219।3।2

कोशोऽस्त्री कुड्मले खड्गपिधानेऽर्थौघदिव्ययोः। नाशः क्षये तिरोधाने जीवितेशः प्रिये यमे। नृशंसखड्गौ निस्त्रिंशावंशुः सूर्येंशवः कराः। आश्वाख्या शालिशीघ्रार्थे पाशो बन्धनशस्त्रयोः। सुरमत्स्यावनिमिषौ पुरुषावात्ममानवौ॥

पदार्थ-विभागः : अवयवः

वाचस्पत्यम्

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अंशु¦ पु॰ अंश--मृग॰ कु। किरणे सूत्रे सूक्ष्मांशे प्रकाशेप्रभायां वेगे च
“अंशवोऽत्र पतिता रवेः किमु” ? इत्युद्भटः
“सूर्य्यांशुभिर्भिन्नमिवारविन्दमिति” कुमा॰। तत्र स्वपर-प्रकाशकस्य तेजःपदार्थस्य समन्तात् प्रसृतः स्पर्शयोग्यः[Page0036-b+ 38] किञ्चिन्निविडः सूक्ष्मांशविशेषः किरणः, स च प्रायशःसूर्य्यस्य, तस्य तेजसा प्रदीप्तचन्द्रादेश्च। तदपेक्षया अल्प-स्थानप्रसारी किञ्चिद्विरलः स्पर्शायोग्यः तेजःसूक्ष्मांशःप्रभा, सा च रत्नादिवस्तुनः। चन्द्रादेस्तु अन्यापेक्षयाऽधिक-प्रसृतत्वात् किरणसम्भवः अतएव तत्र शीतांशुः सितकिरणइत्यादिप्रयोगः। स्पर्शयोग्यः तेजःपदार्थस्य किरणादपिनिविडः सूक्ष्मांशः आतपः, किरणापेक्षया अतिविरल-प्रसारी स्पर्शायोग्यः परप्रकाशसाधनमतिसूक्ष्मांशविशेषःआलोकः। प्रभायाम् आलोके वा न स्पर्शोऽनुभूयते। तत्र अंशुशब्दस्य किरणवाचित्वे सहस्रांशुः उष्णांशुःशीतांशुरित्यादयः। प्रभापरत्वे रत्नांशुः नखांशुरित्या-दयः।
“अजस्रमाश्रावितवल्लकीगुणक्षतोज्ज्वलाङ्गुष्ठनखांशु-भिन्नयेति”
“द्विजावलीबालनिशाकरांशुभिरिति” चमाघः। सूत्रांशपरत्वे अंशुकं पट्टांशुकं चीना-शुकमित्यादयः। प्रकाशपरत्वे उपांशु उपहृतप्रकाश-त्वाच्चास्य गुप्तत्वं प्रतीयते तच्चार्थिकम्। सूक्ष्मविभागपरत्वेप्रांशुः प्रोन्नतावयवत्वा च्चास्य दीर्घत्वं प्रतीयते तच्चा-र्थिकम् इति।

शब्दसागरः

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अंशु¦ m. (-शुः)
1. A ray of light, a sun-beam.
2. Light, splendor, effulgence.
3. Dress, decoration.
4. A small filament or end of thread.
5. The sun.
6. A minute particle or atom. E. अंश to divide, कु aff.

 

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अंशुः [aṃśuḥ], [अंश्-मृग˚ कु.]

A ray, beam of light; चण्ड˚, घर्मं˚ hot-rayed the sun; सूर्यांशुभिर्भिन्नमिवारविन्दम् Ku.1.32; Iustre, brilliance चण्डांशुकिरणाभाश्च हाराः Rām.5.9.48; Śi.1.9. रत्न˚, नख˚ &c.

A point or end.

A small or minute particle.

End of a thread.

A filament, especially of the Soma plant (Ved.)

Garment; decoration.

N. of a sage or of a prince.

Speed, velocity (वेग).

Fine thread-Comp. -उदकम् dew-water. -जालम् a collection of rays, a blaze or halo of light. -धरः -पतिः -भृत्-बाणः -भर्तृ-स्वामिन् the sun, (bearer or lord of rays). -पट्टम् a kind of silken cloth (अंशुना सूक्ष्मसूत्रेणयुक्तं पट्टम्); सश्रीफलैरंशुपट्टम् Y. 1.186; श्रीफलैरंशुपट्टानां Ms.5.12. -माला a garland of light, halo. -मालिन् m. [अंशवो मालेव, ततः अस्त्यर्थे इनि]

the sun (wreathed with, surrounded by, rays).

the number twelve. -हस्तः [अंशुः हस्त इव यस्य] the sun (who draws up water from the earth by means of his 1 hands in the form of rays).

 

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अंशु m. a filament (especially of the सोमplant)

अंशु m. a kind of सोमlibation S3Br.

अंशु m. thread

अंशु m. end of a thread , a minute particle

अंशु m. a point , end

अंशु m. array , sunbeam

अंशु m. cloth L.

अंशु m. N. of a ऋषिRV. viii , 5 , 26

अंशु m. of an ancient Vedic teacher , son of a धनंजयVBr.

अंशु m. of a prince.

 

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(I)--a playmate of क्र्ष्ण. भा. X. २२. ३१.
(II)--the name of the sun in the month of Saha (मार्गशीर्ष). फलकम्:F1:  भा. XII. ११. ४१.फलकम्:/F the आदित्य of the month Citra, possessing ७००० rays. फलकम्:F2:  Br. II. २४. ३४ and ३८.फलकम्:/F An आदित्य. फलकम्:F3:  Br. III. 3. ६७; Vi. I. १५. १३१.फलकम्:/F
(III)--one of the ten devas of the Harita गण। वा. १००. ८९.
(IV)--The son of Purumitra and father of Sat- vata. Vi. IV. १२. ४३.

Vedic Index of Names and Subjects

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Aṃśu.--I. Name of a protégé of the Aśvins in the Rigveda.[] 2. Dhānaṃjayya, pupil of Amāvāsya Śāṇḍilyāyana, according to the Vaṃśa Brāhmaṇa.[]

 

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अंशु पु.
सोम-लता का डण्ठल, ऋ.वे. 1.91.17; वा.सं. 12.114; बौ.श्रौ.सू. 7.5; 24 (1.2०6.9); का.श्रौ.सू. 9.4.2०; वा.श्रौ.सू. (AO.०6.215); आप.श्रौ.सू. 12.9.1०; 2. सोमकण, सोम की टहनियों का कण, ऋ.वे. 1०.17.12; तै.सं. 3.1.1०.1; आप.श्रौ.सू. 12.11.1०; 3. सोमरस, ऋ.वे. 7.98. 1. (सोमलता को कूटने से प्राप्त); 2. एक वर्गाकार सोम-पात्र का नाम, जो लकड़ी से निर्मित होता है और जिसके ऊपर के आधे भाग पर चारों ओर सोने के वलय से चिह्न बनाया जाता है (अङ्कित किया जाता है), तै.सं. 3.3.4.3; श.ब्रा. 4.1.1.2; भा.श्रौ.सू. 13.8.17; 13.9.1-1०; का.श्रौ.सू. 12.5.7. प्याले को सोमरस से आपूरित कर विशिष्ट सोम- याग में अर्पित किया जाता है, जिसमें यजमान की सभी वस्तु (सम्पत्ति) ‘विश्वजित्’ याग के समान दक्षिणा के रूप में दे दी जाती है (का.श्रौ.सू. 22.1.9); वाजपेय, राजसूय एवं सत्र में भी इसे अर्पित किया जाता है। (श.ब्रा. 4.6.1.15; बौ.श्रौ.सू. 14.12; आप.श्रौ.सू. 12.8.13) इसके आहरण की प्रक्रिया निमन्वत् है। अंशु प्रक्रिया-वह एक प्याले भर के लिए ‘सोम की डण्ठल को सवन-फलक (सिल) पर लेता है। इसके अनन्तर वह सवनार्थ प्रस्तर को मौन होकर लेता है। वह उसपर मौनपूर्वक वसतीवरी (संज्ञक) जल को उड़ेलता है। मौनपूर्वक प्रस्तर को उठाकर वह एक बार दबाता है; मौनपूर्वक वह इस आहुति को प्रदान करता है; अर्थात् ‘अंश’ नामक प्याले में लिये गये सोम को बिना साँस लिये-प्याला स्वर्णपट्टिका से ढक दिया जाता है (बौ.श्रौ.सू. 14.12)। राम औपताश्विनि इस अवसर पर स्वतन्त्र श्वास- निःश्वास (साँस लेने एवं छोड़ने) का विधान करते हैं; बुदिल आश्वतराश्वि का मत है कि केवल सवन-प्रस्तर अ 2 (निचोड़ने के पत्थर) को ही उठाना चाहिए। किन्तु आघात नहीं हो, किन्तु याज्ञवल्क्य ऋग्वेद के प्रामाण्य के आधार पर इस क्रिया को अमान्य ठहराते हैं (ऋ. 7.26.1); श.ब्रा. 4.6.1.3-1०; बौ.श्रौ.सू. (14.12) प्रतिपादित करता है कि प्याले को भरते समय मन में ‘वामदेव्य साम’ या इसकी ऋचाओं का पाठ किया जाना चाहिए और यह कि ‘प्रजापतये त्वा’ इस मन्त्र का मध्य में बिना श्वास लिये पाठ किया जाना चाहिए। वह इसे ‘प्रजापतये त्वा’ इस मन्त्र के साथ अर्पित करे। वह अर्पणानन्तर एक स्वर्ण खण्ड को संूघता है। इस प्याले को दधि एवं अदाभ्य प्यालों के अनन्तर अर्पित किया जाता है (चिन्न स्वामी, P. 67)। आप.श्रौ.सू. 12.7.17, के अनुसार प्रथमतया अंशु अथवा अदाभ्य प्याले को समर्पित किया जाता है, तब दूसरे का क्रम आता है। आहुति-दान के अनन्तर प्याले को सदस् (मण्डम) में शेष-भक्षणार्थ होतृ के पास लाया जाता है। श.ब्रा. 4.6.1 के अनुसार यदि अदाभ्य को पहले अर्पित किया जाता है, तो उसी प्याले का अंशु के आहरण के लिए उपयोग होता है। यह कृत्य का प्रारम्भ है, जब इसको लिया जाता है। इस प्याले के लिए (संकर्षण के लिए) पहली बार गर्भिणी हुई गायें एवं स्वर्णखण्ड जो पचीसवां होता है, दक्षिणा है (अर्थात् 12 गायें + उनके गर्भ में पल रहे 12 बच्चे = स्वर्णखण्ड + 25; बौ.श्रौ.सू. 14.12। अंशुग्रह पुं, (अंशौ ग्रहः) ‘अंशु’संज्ञक पात्र में सोमरस को भरना एवं ‘उत्तरवेदि’ पर अगिन् में आहुति देना। यह प्रथम सोमपात्र है जिसको विशिष्ट सोमयाग में आहरित किया जाता है। कुछ पाठभेद इस आहरण के विकल्प का विधान करते हैं। बारह दुधारु गायें अथवा चार वर्ष की 12 बछिया इस कृत्य की दक्षिणा हैं, वै.श्रौ.सू. 15.11.12; बौ.श्रौ.सू. 14.12।

  1. viii. 5, 26. Cf. Ludwig, Translation of the Rigveda, 3, 160;
    Hopkins, Journal of the American Oriental Society, 17, 89;
    Sieg, Die Sagenstoffe des Ṛgveda, 129, suggests that he may be identical with Khela.
  2. Indische Studien, 4, 373.
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