अरणी
यन्त्रोपारोपितकोशांशः
सम्पाद्यताम्कल्पद्रुमः
सम्पाद्यताम्
पृष्ठभागोऽयं यन्त्रेण केनचित् काले काले मार्जयित्वा यथास्रोतः परिवर्तयिष्यते। तेन मा भूदत्र शोधनसम्भ्रमः। सज्जनैः मूलमेव शोध्यताम्। |
अरणी, स्त्री, अरणिः । इत्यमरटीकायां भरतः ॥ (“विधिना मन्त्रयुक्तेन रूक्षाऽपि मथिताऽपि च । प्रयच्छति फलं भूमिररणीव हुताशनम्” ॥ इति पञ्चतन्त्रे ।)
Monier-Williams
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पृष्ठभागोऽयं यन्त्रेण केनचित् काले काले मार्जयित्वा यथास्रोतः परिवर्तयिष्यते। तेन मा भूदत्र शोधनसम्भ्रमः। सज्जनैः मूलमेव शोध्यताम्। |
अरणी du. f. the two अरणिs (used for kindling the fire) RV. etc.
अरणी f. = अरणि1 RV. v , 9 , 3 , etc.
Vedic Index of Names and Subjects
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पृष्ठभागोऽयं यन्त्रेण केनचित् काले काले मार्जयित्वा यथास्रोतः परिवर्तयिष्यते। तेन मा भूदत्र शोधनसम्भ्रमः। सज्जनैः मूलमेव शोध्यताम्। |
Araṇī is the designation, in the Rigveda[१] and later,[२] of the two pieces of wood used in producing the sacrificial fire by friction. The upper (uttarā) and the lower (adharā) are distinguished.[३] The upper, in the form of a drill, is made of the hard wood of the Aśvattha,[४] the lower, in the form of a slab, of the soft wood of the Śamī.[५] The drill is twirled forcibly (sahasā)[६] backwards and forwards with the arms (bāhubhyām)[७] by means of cords (raśanābhiḥ).[८] The action doubtless resembled that by which butter is separated from milk in India at the present day, the same verb (math, ‘twirl,’ ‘churn’)[९] being used for both processes. This method of producing the sacrificial fire still survives in India. Specimens of the modern apparatus may be seen in the Indian Institute and in the PittRivers Museum at Oxford.
Vedic Rituals Hindi
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पृष्ठभागोऽयं यन्त्रेण केनचित् काले काले मार्जयित्वा यथास्रोतः परिवर्तयिष्यते। तेन मा भूदत्र शोधनसम्भ्रमः। सज्जनैः मूलमेव शोध्यताम्। |
अरणी स्त्री.
(द्वि.) अगिन् को मथने के लिए शमी वृक्ष से सम्बद्ध अर्थात् शमी से आवृत अथवा शमी पर उगे हुए अश्वत्थ (पीपल) के काष्ठ से निर्मित दो काष्ठीय टुकड़े, आश्व.श्रौ.सू. 2.1.17; आप.श्रौ.सू. 5.1.2; 1०.7; दो टुकड़ों को काटा जाता है, पुनः उसे रदन क्रिया के द्वारा समतल बनाया जाता है, सुखाया जाता है और उसे आयत का रूप देते हैं, प्रत्येक की नाप 16 अंगुल लम्बी 12 अंगुल चौड़ी एवं 6 अंगुल ऊची (घनी) होती है, बौ.श्रौ.सू. 2.6; तु. वैखा.श्रौ.सू. 1.1; नीचे वाले टुकड़े को अधरारणि कहते हैं, जिस पर ऊपर वाले टुकड़े अर्थात उत्तरारणि को चढ़ाते अयःशया अरणी 110 हैं। एक तर्क = धुरी (प्रमन्थ) दोनों को जोड़ती है। धुरी को घुमाकर अगिन् को उत्पन्न किया जाता है, बौ.श्रौ.सू. 2.6; इस क्रिया को कहा गया है ‘अगिन्ं मन्थति’, आप.श्रौ.सू. 7.12.1०; पृष्ठ्य षडह के चतुर्थ सुत्यादिन पर एक स्तोत्र के समर्पण पर प्रयुक्त होने वाला, मा.श्रौ.सू. 7.2.2.17, देखें - चित्र ‘अधरारणि’।
- ↑ i. 127, 4;
129, 5;
iii. 29, 2;
v. 9, 3;
vii. 1, 1;
x. 184, 3. - ↑ Av. x. 8, 20;
Śatapatha Brāhmaṇa, iii. 1, 1, 11;
iv. 6, 8, 3;
xii. 4, 3, 3. 10;
Kaṭha Upaniṣad, iv. 7;
Śvetāśvatara Upaniṣad, i. 14. 15;
Āśvalāyana Gṛhya Sūtra, iv. 6. - ↑ Śatapatha Brāhmaṇa, iii. 4, 1, 22;
xi. 5, 1, 15;
Kātyāyana Śrauta Sūtra, v. 1, 30, etc. - ↑ Av. vi. 11, 1;
Śatapatha Brāhmaṇa, xi. 5, 1, 13;
Kātyāyana Śrauta Sūtra, iv. 7, 22. - ↑ Av. vi. 11, 1;
30, 2. 3;
Taittirīya Brāhmaṇa, i. 1, 3, 11 et seq. - ↑ Rv. vi. 48, 5.
- ↑ Aitareya Brāhmaṇa, iii. 4, 7. Cf. Rv. x. 7, 5.
- ↑ Cf. Rv. x. 4, 6. See Macdonell, Vedic Mythology, p. 91.
- ↑ Fire: Rv. vi. 15, 17;
48, 5, etc. Butter: dugdhaṃ mathitam ājyaṃ bhavati, Taittirīya Saṃhitā, ii. 2, 10, 2;
Śatapatha Brāhmaṇa, v. 3, 2, 6;
Kātyāyana Śrauta Sūtra, v. 8, 18.