यन्त्रोपारोपितकोशांशः

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कल्पद्रुमः

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पृष्ठभागोऽयं यन्त्रेण केनचित् काले काले मार्जयित्वा यथास्रोतः परिवर्तयिष्यते। तेन मा भूदत्र शोधनसम्भ्रमः। सज्जनैः मूलमेव शोध्यताम्।


वाजपेयम्, क्ली पुं, (वाजमन्नं घृतं वा पेयमत्रेति ।) यागविशेषः । इत्यमरभरतौ ॥ स तु श्रौतसप्त- संख्यान्तर्गतपञ्चमयागः । यथा । अग्निष्टोमो- ऽत्यग्निष्टोमो उकथ्यः षोडशी वाजपेयश्च । इत्याश्वलायनसूत्रम् ॥ ऐनः पौण्डरीकश्चेति सप्तयागाः ॥

वाचस्पत्यम्

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पृष्ठभागोऽयं यन्त्रेण केनचित् काले काले मार्जयित्वा यथास्रोतः परिवर्तयिष्यते। तेन मा भूदत्र शोधनसम्भ्रमः। सज्जनैः मूलमेव शोध्यताम्।


वाजपेय¦ पुंन॰ वाजमन्नं घृतं वा पेयमत्र। यागभेदे कात्या॰ श्रौ॰ तत्प्रकारादि दृश्यम्।

शब्दसागरः

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पृष्ठभागोऽयं यन्त्रेण केनचित् काले काले मार्जयित्वा यथास्रोतः परिवर्तयिष्यते। तेन मा भूदत्र शोधनसम्भ्रमः। सज्जनैः मूलमेव शोध्यताम्।


वाजपेय¦ mn. (-यः-यं) A particular sacrifice. E. वाज the acetous fermen- tation of meal and water, and पेय to be drank, (by the gods.)

 

पृष्ठभागोऽयं यन्त्रेण केनचित् काले काले मार्जयित्वा यथास्रोतः परिवर्तयिष्यते। तेन मा भूदत्र शोधनसम्भ्रमः। सज्जनैः मूलमेव शोध्यताम्।


वाजपेय/ वाज--पेय mn. " the drink of strength or of battle " , N. of one of the seven forms of the सोम-sacrifice (offered by kings or Brahmans aspiring to the highest position , and preceding the राज-su1ya and the बृहस्पति-sava) AV. Br. S3rS. MBh. R. Pur.

वाजपेय/ वाज--पेय mn. N. of the 6th book of the शतपथ-ब्राह्मणin the काण्व-शाखा

वाजपेय/ वाज--पेय m. = वाजपेये भवो मन्त्रः, or वाजपेयस्य व्याख्यानं कल्पःPat. on Pa1n2. 4-3 , 66 Va1rtt. 5 etc.

 

पृष्ठभागोऽयं यन्त्रेण केनचित् काले काले मार्जयित्वा यथास्रोतः परिवर्तयिष्यते। तेन मा भूदत्र शोधनसम्भ्रमः। सज्जनैः मूलमेव शोध्यताम्।


--a sacrifice; फलकम्:F1: वा. ९९. ३७२.फलकम्:/F represents the waist of the per- sonified Veda; फलकम्:F2: Ib. ३०. २९२; १०४. ८३; १११. ३३.फलकम्:/F produced by ब्रह्मा and performed by दक्ष. फलकम्:F3: भा. III. १२. ४०; IV. 3. 3; Br. III. ७४. १८५.फलकम्:/F [page३-183+ २६]

 

पृष्ठभागोऽयं यन्त्रेण केनचित् काले काले मार्जयित्वा यथास्रोतः परिवर्तयिष्यते। तेन मा भूदत्र शोधनसम्भ्रमः। सज्जनैः मूलमेव शोध्यताम्।


VĀJAPEYA : A sacrifice.


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*12th word in right half of page 820 (+offset) in original book.

Vedic Index of Names and Subjects

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पृष्ठभागोऽयं यन्त्रेण केनचित् काले काले मार्जयित्वा यथास्रोतः परिवर्तयिष्यते। तेन मा भूदत्र शोधनसम्भ्रमः। सज्जनैः मूलमेव शोध्यताम्।


Vājapeya is the name of a ceremony which, according to the Śatapatha Brāhmaṇa[] and later authorities,[] is only performed by a Brahmin or a Kṣatriya. The same Brāhmaṇa[] insists that this sacrifice is superior to the Rājasūya, but the consensus of other authorities[] assigns to it merely the place of a preliminary to the Bṛhaspatisava in the case of a priest, and to the Rājasūya in the case of a king, while the Śatapatha[] is compelled to identify the Bṛhaspatisava with the Vājapeya. The essential ceremony is a chariot race in which the sacrificer is victorious. There is evidence in the Śāṅkhāyana Śrauta Sūtra[] showing that once the festival was one which any Āryan could perform. Hillebrandt,[] indeed, goes so far as to compare it with the Olympic games; but there is hardly much real ground for this: the rite seems to have been developed round a primitive habit of chariot racing, transformed into a ceremony which by sympathetic magic secures the success of the sacrificer. In fact[] Eggeling seems correct in holding that the Vājapeya was a preliminary rite performed by a Brahmin prior to his formal installation as a Purohita, or by a king prior to his consecration. The Kuru Vājapeya was specially well known.[]

 

पृष्ठभागोऽयं यन्त्रेण केनचित् काले काले मार्जयित्वा यथास्रोतः परिवर्तयिष्यते। तेन मा भूदत्र शोधनसम्भ्रमः। सज्जनैः मूलमेव शोध्यताम्।


वाजपेय पु.
एक यज्ञ का नाम, इसका अनुष्ठान ‘षोडशी’ की तरह होता है; 17 दीक्षायें, तीन उपसद् और बीसवें (दिन) सुत्या अथवा एक दीक्षा, तीन उपसद् एवं 17 सुत्यायें, प्रयुक्त सभी द्रव्यों की संख्या 17, आप.श्रौ.सू. 18.1.4-7. यह सोम की छठवीं संस्था है। यह उक्थ्य के ढाँचे का अनुकरण करता है, किन्तु इसका अपना पृथक् वैशिष्टय है। इसमें कई लोकलुभावन कृत्य समाहित हैं। इसमें 17 स्तोत्र एवं 17 शस्त्र होते हैं, जिनमें वाजपेय स्तोत्र एवं शस्त्र अन्तिम होता है। इतनी संख्या में ही (अर्थात् सत्रह) पशुओं की बलि दी जाती है; सोम एवं सुरा के 17 प्याले तैयार किये जाते हैं। पूर्वनिर्मित सुरा का क्रयण किया जाता है। दोपहर में 17 रथों की धावन-स्पर्धा होती है। कोई धनुर्धर एक तीर चलाता है और तीन के गिरने के स्थान से पुनः तीर चलाता है। यह तीर-चालन की क्रिया 17 बार की जाती है। सत्रह बार के तीरचालन द्वारा चिह्नित भूमि की दूरी तक रथ-धावन-स्पर्धा होती है। चात्वाल के स्थल पर गाड़े गये एक यूप पर जड़े गये रथ पर बैठते समय ब्रह्मा एक साम का गायन करता है। 17 रथों की धावन-स्पर्धा के प्रारम्भ के समय 17 मृदंग बजाये जाते हैं, आप.श्रौ.सू. 18.4.13. सोम के प्यालों के अर्पण के अनन्तर 16 सुरा के प्याले प्रतिस्पर्धियों को दिये जाते हैं, जिनमें स्थित सुरा का वे पान करते हैं। यज्ञीय स्तम्भ से एक चतुष्कोणीय सीढ़ी लगा दी जाती है। यजमान और उसकी पत्नी सीढ़ी से यूप के शीर्ष पर चढ़ते हैं। एक लम्बी लग्गी में बाँधी गई नमक की सोलह पोटलियां यूप के शीर्ष पर उनके तक उठाई जाती है, आप.श्रौ.सू. 18.1-7; का.श्रौ.सू. 14; श्रौ.को. (सं.)

  1. v. 1, 5, 2. 3.
  2. See Weber, Über den Rājasūya;
    Hillebrandt, Rituallitteratur, 147 et seq.
  3. v. 1, 1, 13;
    Kātyāyana Śrauta Sūtra, xv. 1, 1, 2.
  4. Taittirīya Saṃhitā, v. 6, 2, 1;
    Taittirīya Brāhmaṇa, i. 7, 6, 1;
    Āśvalāyana Śrauta Sūtra, ix. 9, 19;
    Lāṭyāyana Srauta Sūtra, viii. 11, 1, etc.
  5. v. 2, 1, 2. Cf. Kātyāyana Srauta Sūtra, xiv. 1, 2.
  6. xv. 1. See Weber, op. cit., 41 et seq.
  7. Vedische Mythologie, 1, 247.
  8. Sacred Books of the East, 41, xxiv, xxv.
  9. Sāṅkhāyana Srauta Sūtra, xv. 3, 14 et seq.;
    Āpastamba Śrauta Sūtra, xviii. 3, 7.
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